रायपुर संभाग

अबूझ सावे ‘आखातीज’ पर इस बार विवाह मुहूर्त नहीं : गुड्डे-गुड़ियों की शादी का रस्म निभाएंगे बच्चे, पितरों को करेंगे जल अर्पित, धान बोआई की औपचारिक शुरूआत भी होगी

केशव पाल @ तिल्दा-नेवरा | हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों में अक्षय तृतीया को युगादि तिथि कहा गया है। इस दिन से कई युगों का आरंभ हुआ है। इस दिन सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ हुआ है। इस साल अक्षय तृतीया का पर्व आज 22 अप्रैल को है। अक्षय तृतीया को अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक कहा जाता है। इस दिन को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। इस दिन ही भगवान विष्णु के अंशावतार महर्षि वेदव्यास ने महाभारत को लिखना शुरू किया था। इस साल अक्षय तृतीया पर कई शुभ योग बन रहे हैं। इस दिन उच्च के चंद्रमा वृष राशि में होंगे। साथ ही इस दिन आयुष्मान योग होगा। शुभ कृतिका नक्षत्र रहेगा। सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, अमृत सिद्धि योग और त्रिपुष्कर योग रहेगा। लेकिन इस बार विवाह का मुहूर्त नहीं बन रहा है। इस साल अक्षय तृतीया के दिन गुरु का तारा अस्त स्वरूप में होगा। शास्त्रानुसार गुरु व शुक्र के तारे के अस्तोदय स्वरूप में रहते विवाह मुहूर्त नहीं बनता है। ऐसे में इस बार अक्षय तृतीया पर शादी-ब्याह के लिए लग्न मुहूर्त नहीं बन रहा है। किंतु अबूझ मुहूर्त होने की वजह से बहुत जगह विवाह कार्यक्रम हो रहा है। वर्षों बाद ऐसा संयोग बना है कि इस बार अक्षय तृतीय को शादी का मुहूर्त नहीं है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार 27 अप्रैल तक गुरु अस्त है। गुरु अस्त होने की वजह से विवाह करना शास्त्र सम्मत नहीं होता। इधर, अक्षय तृतीया को लेकर मिट्टी से बने गुड्डे-गुड़ियों की बाजार सज चुकी है। विदित हो कि आखातीज के अबूझ सावे पर हर साल शादी विवाहों की धूम रहती है। ज्योतिषियों के मुताबिक इस दिन किसी भी तरह का शुभ कार्य किया जा सकता है। हर साल इस दिन हजारों शादियां भी होती है। बच्चे भी गुड्डा-गुड़ियों की शादी रचाते है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन दान-पुण्य करना भी शुभ होता है। अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदने की भी परंपरा है। अक्षय का मतलब है जिसका कभी क्षय ना हो यानी जो कभी नष्ट ना हो। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं उनका अनेकों गुना फल मिलता है। इस दिन बिना पंचांग देखे भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश किया जा सकता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही लिया था। इसलिए परशुराम का जन्म उत्सव भी इसी दिन मनाया जाता है। परशुराम जी को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना गया है। अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है।

पितरों को करते हैं जल अर्पित

इस दिन ग्रामीण अपने पितरों को जल भी समर्पित करते है। अक्षय तृतीया का पर्व पितरों को प्रसन्न करने के लिए शुभ माना गया है। इस दिन पिंडदान करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है। पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होने से जीवन में आने वाली परेशानियां दूर होती हैं। सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ अक्षय तृतीया से ही माना जाता है। इसके साथ ही ऐसा माना जाता है कि इसी तिथि पर ही द्वापर युग का समापन हुआ था।

बच्चों द्वारा गुड्डे-गुड़ियों की शादी

इस दिन बच्चों द्वारा मिट्टी से बने गुड्डे-गुड़ियों यानी पुतरा-पुतरी का विवाह भी विधिविधान से सम्पन्न कराया जाता है। इसके लिए पारंपरिक तरीके से मंडप सजाया जाता है। वहां हल्दी खेली जाती है और पुतरा यानी गुड्डे की बारात निकालकर मंडप में पुतरी यानी गुड्डी से उसका ब्याह रचाया जाता है। छत्तीसगढ़ की परंपरा के अनुरूप बच्चों के लिए यह पर्व बेहद खास होता है। बच्चे एक-दूसरे को हल्दी लगाकर जमकर मौज मस्ती भी करते है। दिनभर शादी की रस्मों के साथ रात में टीकावन भी किया जाता है। जगह-जगह बच्चों द्वारा शादी का आयोजन किया जाता है।

ठाकुरदेव को करते हैं धान अर्पित

किसान अक्षय तृतीया के दिन से खेतों में धान की बोआई शुरू कर देते हैं। किसानों द्वारा अपने खेतों में हल चलाकर धान बोने की शुरुआत इसी दिन की जाती थी। सुबह दोने में किसान धान लेकर गांव के ठाकुर देव को अर्पित करते है और पूजा-अर्चना करते है। गांव के बैगा द्वारा देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के बाद ठाकुर देव के पास ही बोआई की औपचारिकता पूरी करते है। इसके बाद किसान अपने-अपने दोने को घर लाकर खेतों में ले जाते है और पूजा कर उसकी बोआई करते है। गांव के किसान खेतों में जाकर कुदाली से धान बोने की परंपरा निभाते है।

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