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कोरबा लोकसभा – बिहारी…बाहरी के मुद्दों के बीच क्या सरोज खिलाएगी कमल ? ‘महंत’ की साख दांव पर !…देखे ‘चुनाव चालीसा’

नवीन देवांगन
इस बार बात छत्तीसगढ़ के उस लोकसभा की जहां दोनो मुख्य पार्टी में महिलाओं के बीच मुकाबला है, यानी दीदी और भाभी के बीच जिसके चलते यह लोकसभा सीट हाई प्रोफाइल सीट बन चुकी है। यहां कांग्रेस को प्रदर्शन दोहराने और भाजपा को अपनी साख बचाने का दबाव है। पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस की ओर से ज्योत्सना महंत चुनाव लड़ीं थीं और सांसद भी बनी थीं। वर्तमान में वह दोबारा इस सीट पर कांग्रेस की टिकट से चुनाव लड़ रही हैं। जबकि भाजपा की ओर से तेजतर्रार नेत्री सरोज पांडेय चुनावी मैदान में हैं। हालांकि ये चुनाव ज्योत्सना महंत और भाजपा की सरोज पांडेय के बीच नहीं है, बल्कि उनके पति और नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत और भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव सरोज पांडेय के बीच है
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2024 को मिला के अब तक चार चुनाव
नये परिसीमन के साथ अस्तित्व में आया कोरबा लोकसभा क्षेत्र में पहला लोकसभा चुनाव 2009 में सम्पन्न हुआ. तब कांग्रेस से डॉ चरणदास महंत ने बीजेपी के करूणा शुक्ला को 20737 मतो से पराजित किया था. 2009 के बाद 2014 में इस लोकसभा क्षेत्र से दूसरे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के डॉ चरणदास महंत को बीजेपी के डॉ बंशीलाल महतो ने महज 4265 मतो से शिकस्त दे दी थी, बात करे 2019 लोकसभा चुनाव की तो. इस चुनाव में डॉ चरणदास महंत चुनाव नहीं लड़े और उनके स्थान पर उनकी धर्मपत्नी ज्योत्सना महंत पहली बार चुनाव मैदान में उतरी और जीत भी हासिल की
कोरबा लोकसभा से कांग्रेस ने एक बार फिर चरणदास महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत को ही अपना कैंडिडेट बनाया है । 2019 में मोदी की लहर थी। ऐसे में छत्तीसगढ़ में जिन दो सीटों पर कांग्रेस आई थी, उनमें एक कोरबा की थी और एक बस्तर। पार्टी ने मोदी लहर में भी जीतकर आने वाली ज्योत्सना महंत को इसीलिए टिकट दिया है। हालांकि ये चुनाव ज्योत्सना महंत और भाजपा की सरोज पांडेय के बीच नहीं है, बल्कि उनके पति और नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत और भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव सरोज पांडेय के बीच है। इस बात में कोई शक नहीं कि इस क्षेत्र में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता चरणदास महंत ही हैं। पिछली सरकार में वे विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका में थे और उससे पहले कहीं न कहीं मुख्यमंत्री की रेस में भी। उनकी राजनीति को लोग इस तरह से देखते हैं कि वे कहते कुछ नहीं और कर सबकुछ जाते हैं। भूपेश बघेल अगर केंद्र में जाते हैं तो सबसे ताकतवर कांग्रेस नेता के रूप में चरणदास महंत ही राज्य में होंगे।
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भाजपा को अपनी साख बचाने की चिंता
सरोज पांडे भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं। ऐसे में यहां भाजपा को अपनी साख बचाने की चिंता है। कोरबा हारी हुई सीट है इसलिए यहां भाजपा-कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के बीच भी प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है। भाजपा की ओर से सरोज पांडेय तीसरी बार लोकसभा चुनाव के मैदान में हैं, इसके पहले सरोज दुर्ग नगर निगम की महापौर, विधायक और सांसद रहीं हैं। भाजपा में जहां सरोज को सम्मान के साथ ”दीदी” पुकारा जाता है वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व नेता प्रतिपक्ष डा. चरणदास महंत की धर्मपत्नी होने के नाते ज्योत्सना महंत को कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता सम्मान के रूप में उन्हें ”भाभी” पुकारते हैं।

चार जिलों के 8 विधानसभा क्षेत्र शामिल
कोरबा लोकसभा क्षेत्र में कुल चार जिलों के 8 विधानसभा क्षेत्र शामिल है. जिनमें कोरिया व एमसीबी जिले के बैकुंठपुर, मनेंद्रगढ़ और भरतपुर-सोनहत विधानसभा क्षेत्र के अलावा पेण्ड्रा जिले से मरवाही विधानसभा जबकि कोरबा जिले से पाली-तानाखार, कटघोरा, रामपुर और कोरबा विधानसभा क्षेत्र शामिल है.

हर बाद प्रत्याशी बदलती रही है भाजपा
कोरबा में तीन चुनाव व वर्तमान चौथे चुनाव में बीजेपी हर बार प्रत्याशी बदलती रही. पहले चुनाव में करुणा शुक्ला, दुसरे चुनाव में डॉ. बंशीलाल महतो, तीसरे चुनाव में ज्योतिनंद दुबे और अब चौथे चुनाव में सरोज पाण्डेय को अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं कांग्रेस लगातार महंत परिवार पर विश्वास कायम रखा है. पहले दो चुनाव डॉ. चरणदास महंत लड़े और अब लगातार दो चुनाव उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत चुनाव लड़ रही है. बता दे कि 2019 के चुनाव में ज्योत्सना महंत का मुकाबला करने बीजेपी ने ज्योतिनंद दुबे को चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन एक बार फिर इस लोकसभा से कांग्रेस की जीत हुई और ज्योत्सना चरणदास महंत ने बीजेपी के ज्योतिनंद दुबे को 26249 मतों से हरा दिया.
कोरबा लोकसभा सीट पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को भी दरकिनार नही किया जा सकता ,गोंगपा के वोटों से कोरबा सीट पर हार जीत का समीकरण बदलता रहा है.

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी करती है खेला
जब-जब गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को कम वोट मिले हैं कांग्रेस को फायदा हुआ है. एक चुनाव में जब गोंगपा को 50 हजार से ज्यादा वोट मिले तो कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था. दो चुनाव में 40 हजार से कम वोट गोंगपा को मिले थे. इन चुनावों में कांग्रेस को जीत मिली थी. इसी तरह 2014 के चुनाव में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के बढ़े मतों की संख्या के कारण कांग्रेस लगातार जीत हासिल करने में नाकाम हो गई थी. इस चुनाव में कांग्रेस ने मौजूदा सांसद डॉ. चरणदास महंत को रिपीट किया था, जबकि बीजेपी ने डॉ. बंशीलाल महतो को टिकट दिया था. डॉ. बंशीलाल महतो को 4 लाख 39 हजार 2 और डॉ. चरणदास महंत को 4 लाख 34 हजार 737 वोट मिले थे. इस तरह बीजेपी प्रत्याशी डॉ. महतो ने नजदीकी मुकाबले में डॉ. महंत को 4 हजार 265 वोटों के मामूली अंतर से हरा दिया था.

खास बात रही कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने इस चुनाव में 52 हजार 753 वोट हासिल किए थे और प्राप्त मत का आंकड़ा गत चुनाव से बढ़कर 3.71 फीसदी हो गया था. जिसका नुकसान कांग्रेस को हुआ. 2009 और 2014 के चुनाव में गोंगपा के वोट में लगभग 20 हजार की बढ़ोतरी हुई और कांग्रेस की गत चुनाव में 20 हजार से अधिक वोटों की जीत 4 हजार से ज्यादा वोटों की हार में तब्दील हो गई.

2019 के चुनाव में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के वोट प्रतिशत में गिरावट आई तो कांग्रेस प्रत्याशी को एक बार फिर जनता ने संसद भवन तक पहुंचा दिया. इस चुनाव में कांग्रेस ने डॉ. चरण महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत को टिकट दिया. वहीं बीजेपी ने चेहरे बदलने की परंपरा को जारी रखते हुए ज्योतिनंद दुबे को प्रत्याशी चुना. कांग्रेस प्रत्याशी ज्योत्सना महंत ने 5 लाख 23 हजार 310 वोट हासिल किए. प्रतिद्वंदी ज्योतिनंद दुबे को 4 लाख 97 हजार 61 वोट मिले. इस तरह उन्हें 26 हजार 249 वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा.

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी हर चुनाव में मुकाबला त्रिकोणीय बनाने की कोशिश करती रही है. इस बार कोरबा सीट पर गोंगपा ने श्याम सिंह मरकाम को टिकट दिया है. कोरबा लोकसभा अंतर्गत स्थित पाली तानाखार, भरतपुर सोनहत, मरवाही और बैकुंठपुर जैसी सीटों पर गोंगपा का बड़ा जनाधार है. हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के उम्मीदवारों ने लोकसभा अंतर्गत स्थित विधानसभा सीटों पर लगभग डेढ़ लाख से अधिक मत प्राप्त किया है. वहीं पाली तानाखार में गोंगपा के विधायक भी चुने गए हैं.

आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में
चुनावी रणनीति में जहां अलग-अलग तथ्य जीत व हार के लिए निर्णायक होगा वहीं निर्दलीय व क्षेत्रीय पार्टी के अलावा अन्य दलों का असर भी आदिवासी मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए प्रभावी रहेगा। बसपा, गोंगपा सहित अन्य पार्टियों में जातिगत समीकरण की भूमिका व महत्वाकांक्षा भी आदिवासी मतदाताओं के मतों को प्रभावित करने वाला होगा। प्रत्याशियों की स्थिति स्पष्ट होने के बाद भले ही चुनावी पंडितों की नजर कांग्रेस व भाजपा के गढ़ व उनके मतांतरों पर टिक जाती है किंतु जातिगत समीकरण का मामला आंकड़ों से परे होता है।

चरणदास महंत के लिए भी ज्योत्सना महंत को चुनाव जिताना चुनौती है। पिछले पांच सालों में कोरबा क्षेत्र में कांग्रेस से लोगों ने नाराजगी जताई है और इसका असर विधानसभा चुनाव में दिख चुका है। यहां की आठ विधानसभा में से 6 भाजपा, 1 गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और सिर्फ 1 सीट कांग्रेस के पास है। सिर्फ रामपुर की सीट कांग्रेस के पास है। यानी यहां जनता कांग्रेस से नाराज है।

सरोज पांडेय को बिहारी और बाहरी का निकालना होगा तोड़
सरोज पांडेय के लिए कोरबा की राह इतनी आसान नहीं है। वहां अभी से नारा लग रहा है बिहारी और बाहरी का। सरोज पांडेय दुर्ग से जाकर कोरबा में चुनाव लड़ रही हैं। ऐसा फैलाया जा रहा है कि वे बिहारी ब्राह्मण हैं, जबकि ज्योत्सना महंत को स्थानीय बताया जा रहा है। अगर सरोज पांडेय सिर्फ मोदी के चेहरे और राम के भरोसे रहीं, तो उन्हें मुश्किल हो सकती है। उन्हें बिहारी और बाहरी का काट सोचकर रखना होगा। कांग्रेस के लोग सामाजिक बैठकों में इस बात का प्रचार कर रहे हैं। वैसे दुसरा पक्ष यह भी सामने आ रहा है कि सरोज पांडे को कोरबा में बहुतायत उत्तरभारतीय लोगो के वोटो को ध्यान में रखकर मैदान में उतारा गया है तो वहीं कुछ लोगो का मानना है कि उत्तरभारतीय मत गर एकजूट रहते तो विधानसभा में जयसिंह अग्रवाल को हार का सामना नहीं करना पड़ता

कोरबा लोकसभा भूगोल और इतिहास काफी पेचीदा
कोरबा लोकसभा सीट का भूगोल और इतिहास काफी पेचीदा है। आदिवासी बाहुल्य सीट पर सामान्य वर्ग से ही प्रत्याशी जीत कर संसद भवन पहुंचते रहे हैं। दो बार कांग्रेस और एक बार भाजपा का इस सीट पर कब्जा रहा है। कांग्रेस के टिकट का गणित महंत परिवार का वोट बैंक को कहा जा सकता है। दूसरी ओर भाजपा के स्थानीय प्रत्याशियों के पूर्व के चुनाव के प्रदर्शन और राष्ट्रीय स्तर के चेहरे को माना जा रहा है।

मोदी बनाम न्याय पत्र और लोकल बनाम बाहिरी का मुद्दा
कोरबा लोकसभा सीट पर भले ही जातिगत वोटों को साधने प्रचार ने जोर पकड़ा है, लेकिन प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस के बीच मुद्दा मोदी बनाम न्याय पत्र और लोकल बनाम बाहिरी प्रत्याशी है। भाजपा प्रत्याशी मोदी की गारंटी पूरी होने की गारंटी के साथ वोट मांग रही हैं तो कांग्रेस प्रत्याशी न्याय पत्र के मुद्दों को जनता के सामने रखकर वोटों की अपील करती नजर आ रही हैं। स्थानीय मुद्दों के नाम पर दोनों प्रत्याशी एक दूसरे पर तीखा हमला कर रहे हैं। एक मौजूदा सांसद है तो दूसरी लोकसभा सीट की पालक सांसद है। ऐसे में दोनों ही प्रत्याशी एक दूसरे के कमियां गिनाकर जनता के सामने अपना दावा मजबूती से रख रही हैं।

यह सामान्य लोकसभा सीट होने के बावजूद यहां आदिवासी मतदाताओं की भूमिका निर्णायक होगी। कोरबा जिले के रामपुर व पाली तानाखार में राठिया, कंवर, पैकरा, मझवार बिंझवार जनजातियों का दबदबा है। वहीं कोरबा के सुदूर वनांचलों में कोरवा, पंडो, बिरहोर, धनुहार, गोंड़, कंवर जनजाति के मतदाता चुनाव मतदान में अपनी भूमिका निभाते हैं । मरवाही क्षेत्र एक तरह से कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। तीसरे फेस याने की 7 मई को यहां मतदान होगा फिलहाल दोनो मुख्य दलो के प्रत्याशी के प्रचार प्रसार और आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला तेज हो चला है वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और बसपा भी कमर कस के तैयार है कोरबा लोकसभा का यह चौथा चुनाव है दो बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी के सर ताज सज चुका है, कांग्रेस चाहेगी की इस चुनाव में भी वो बीजेपी को पछाड़ दे जबकि बीजेपी मामला बराबर करने की कोशिश में जुटी हुई है, लोग कह रहे है कि यहां लड़ाई भाभी और दीदी के बीच नई बल्कि भईया और दीदी याने चरणदास महंत और सरोज पांडे के बीच है, बिहारी और बाहरी का तमगा लगने का फायदा सरोज पांडे को मिलता या ज्योतसना भाभी इस मुद्दे पर बाजी मार जाऐगी इसके लिए हमें इंतजार करना होगा 4 जून का
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Highlights
📌कोरबा में दो बार कांग्रेस और एक बार BJP ने मारी बाजी
📌पिछले तीन चुनाव में लगातार मतदान का प्रतिशत बढ़ता ही रह
📌इस लोकसभा क्षेत्र में पहला चुनाव 2009 में संपन्न हुआ था
📌4 जिलों के 8 विधानसभा है शामिल,बीजेपी बदलती रही प्रत्याशी
📌कोरबा में चलरहा है बिहारी और बाहरी का फार्मूला
📌जाति फैक्टर का समीकरण अब तक कारगर नहीं रहा
📌आदिवासी बाहुल्य सीट पर सामान्य वर्ग से बनते रहे हैं सांसद
📌जिसको मिला आदिवासी का साथ, वह जीता
📌निर्दलीय व क्षेत्रीय दलों का भी होगा प्रभाव
📌कोरबा सीट का हाल, ‘दीदी’-‘भाभी’ के बीच वर्चस्व की लड़ाई
📌छत्तीसगढ़ की कोरबा लोकसभा सीट बनी हाई प्रोफाइल सीट
📌कांग्रेस प्रदर्शन दोहराने और भाजपा साख बचाने के दबाव में
📌कोरबा लोकसभा क्षेत्र में लगभग 16 लाख से अधिक मतदाता
📌कोरबा जिले के सर्वाधिक 9 लाख 36 हजार 576 मतदाता
📌गोंड़ वोटर 3 लाख, कंवर 2 लाख, राठिया 70 हजार
📌उरांव तंवर भारिया वोटरो की संख्या 1 लाख 39 हजार
📌अनुसूचित जाति के वोटर 1 लाख 50 हजार
📌ओबीसी वोटर 4 लाख, अल्प संख्यक मुस्लिम वोटर 60 हजार
📌किसी भी प्रत्याशी को लगातार दूसरी बार जीत का मौका नहीं मिला
📌भाजपा ने सरोज पांडेय और कांग्रेस ने ज्योत्सना महंत पर दांव खेला
📌कोरबा लोकसभा में आदिवासी वोट तय करते है जीत हार का फैसला

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