पितर पाख आज ले शुरू : पितृ ऋण उतारे बर करे जाथे श्राद्ध कर्म, पूर्वज मन ल करे जाही जल अर्पित, मृत्युतिथि म होही श्राद्ध
केशव पाल @ तिल्दा-नेवरा | आज पितर बैठकी आय। आज ले पितृ पक्ष यानी पितर पाख चालू होवत हे। पितृ पक्ष 15 दिन के होथे। ए बछर 16 दिन तक रइही। जेन ह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा तिथि ले शुरू होके आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के सर्वपितृ अमावस्या तक रहिथे। पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष भाद्रपद महीने के पूर्णिमा ले शुरू होके पितृमोक्षम अमावस्या तक चलथे। आज 29 सितंबर ले पितृ पक्ष शुरू होवत हे जेहा 14 अक्टूबर के खतम होही। पितृ पक्ष म अपन पूर्वज मन ल याद कर के उकर आत्मा के शांति बर श्राद्ध करे जाथे। ए 16 दिन म लोगन अपन-अपन पितर यानी पूर्वज मन ल जल देथे अउ वोकर मृत्युतिथि म वोकर श्राद्ध करथे। पिता-माता आदि पारिवारिक लोगन के मृत्यु के बाद वोकर तृप्ति बर श्रद्धापूर्वक किए जाने वाला कर्म ल पितृ श्राद्ध कहे जाथे। पितृपक्ष म हिन्दू लोगन मन कर्म अउ वाणी ले संयम के जीवन जिथे। अपन पुरखा मन ल स्मरण करके जल अर्पित करथे अउ निर्धन अउ ब्राह्मण मन ल दान देथे। सरल शब्द म समझे जाए त श्राद्ध दिवंगत परिजन मन ल वोकर मृत्यु के तिथि म श्रद्धापूर्वक सुरता करना आय। अगर कोनो परिजन के मृत्यु प्रतिपदा के होय हे त वोकर श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही करे जाही। मतलब वोकर मृत्यु के तिथि के अनुसार वोकर श्राद्ध करे जाथे। इही प्रकार अन्य दिन म घलो अइसने करे जाथे। अइसन कहे जाथे कि,पिता के श्राद्ध अष्टमी के दिन अउ माता के नवमी के दिन करे जाथे। जेन परिजन मन के अकाल मृत्यु होय हे यानी कोनो दुर्घटना या आत्महत्या के कारण त वोकर मन के श्राद्ध चतुर्दशी के दिन करे जाथे। साधु अउ संन्यासी मन के श्राद्ध द्वाद्वशी के दिन करे जाथे। जेन पितर मन के मरे के तिथि सुरता नइ राहय वोकर मन के श्राद्ध अमावस्या के दिन करे जाथे। ए दिन ल सर्व पितृ श्राद्ध कहे जाथे। पितर पाख म कुश,जनेऊ,काली तिली,काली उड़द दाल,जँवा,दौना लाल सफेद कपडा़ के विशेष महत्व रहिथे। शास्त्र के अनुसार माता-पिता के मृत्यु के बाद ओकर आत्मा ल पूर्ण रूप ले मुक्ति प्रदान करे बर श्राद्ध करे जाथे। मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष म श्राद्ध करे ले पितर के आशीर्वाद प्राप्त होथे। श्राद्ध के दौरान पितर ल प्रसन्न करे जाथे। जन्मदाता माता-पिता के मृत्यु उपरांत लोगन ओमन ल विस्मृत झन कर देवय इही कारण ओकर मन के श्राद्ध करे के विशेष विधान शास्त्र मन म बताय गेहे। हिन्दू धर्म अउ भारतीय संस्कृति म पूर्वज मन के प्रति श्रद्धा निवेदन बर पितृपक्ष पखवाड़ा के विशेष महात्मय हे। पितृपक्ष पखवाड़ा के समापन स्नान,दान अउ श्राद्ध के अमावस्या के दिन होय के संग ही ओकर अगले दिन ले शारदीय नवरात्र आरंभ होथे। पितर के अंतिम दिन ल पितर खेदा कहे जाथे। ए बछर 15 अक्टूबर ले कलश स्थापना के संग शारदीय नवरात्र आरंभ होही। शास्त्र के मुताबिक हमर पूर्वज या पितर पितृ पक्ष म धरती म निवास करथे। पितृ ऋण उतारे बर ही पितृ पक्ष म श्राद्ध कर्म करे जाथे।
शास्त्र के अनुसार तीन ऋण
शास्त्र के अनुसार तीन प्रकार के ऋण बताय गेहे। देव ऋण,ऋषि ऋण अउ पितृ ऋण। शास्त्र मन के मुताबिक हमर पूर्वज या पितर पितृ पक्ष म धरती म निवास करथे। पितृ ऋण उतारे बर ही पितृ पक्ष म श्राद्ध कर्म करे जाथे। अइसन मान्यता हवय कि ये अवधि म जेन भी ओला श्रद्धा ले कुछु अर्पित करथे। वोहा ओला खुशी-खुशी स्वीकार करथे। हिन्दू धर्म म मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माने जाथे। मान्यता हे कि अगर कोनो मनखे के विधिपूर्वक श्राद्ध अउ तर्पण नइ करे ले ओला ए लोक ले मुक्ति नइ मिलय। अउ वोहा भूत के रूप म ए संसार म ही रहि जथे। हिन्दू ज्योतिष मन के अनुसार पितृ दोष ल सबले जटिल कुंडली दोष में से एक माने जाथे। पितर मन के शांति खातिर हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा ले अश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृ पक्ष श्राद्ध होथे। मान्यता हे कि,ए दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितर मन ल आजाद कर देथे ताकि वोमन अपन परिजन मन ले श्राद्ध ग्रहण कर सकय। जो भी वस्तु उचित काल या स्थान म पितर मन के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मण मन ल श्रद्धापूर्वक दे जाथे वोहा श्राद्ध कहलाथे। श्राद्ध के माध्यम ले पितर मन के तृप्ति बर भोजन पहुंचाय जाथे। पिण्ड रूप म पितर मन ल दे भोजन श्राद्ध के अहम हिस्सा होथे।मान्यता हे कि अगर पितर रुष्ट हो गे त मनुष्य ल जीवन म कई समस्या के सामना करना पड़ सकत हे। पितर मन के अशांति के कारण धन हानि अउ संतान पक्ष ले समस्या के सामना घलो करना पड़थे। श्राद्ध म तिल,चावल,जौ आदि ल अधिक महत्त्व दे जाथे। श्राद्ध म तिल अउ कुश के सर्वाधिक महत्त्व रहिथे। श्राद्ध म पितर मन ल अर्पित करे जाने वाला भोज्य पदार्थ ल पिंडी रूप म अर्पित करना चाही।
कौंआ के रहिथे विशेष महत्व
कौंआ मन ल पितर के रूप माने जाथे। मान्यता हे कि श्राद्ध ग्रहण करे बर हमर पितर कौंआ के रूप धारण करके नियत तिथि म हमर घर म आथे। अगर ओला श्राद्ध नइ मिलय त वोहा रुष्ट हो जथे। इही कारण श्राद्ध के प्रथम अंश कौंआ मन ल दे जाथे। अइसन मान्यता हे कि,इन्द्र के पुत्र जयंत ह सबले पहिली कौंआ के रूप धारण करे रहिस। ए कथा त्रेतायुग के आय। जब भगवान श्रीराम ह अवतार लिस अउ जयंत ह कौंआ के रूप धारण कर माता सीता के पैर म चोंच मारे रहिस। तब भगवान श्रीराम ह तिनका के बाण चलाके जयंत के आंखी फोड़ दे रहिस। जब वोहा अपन गलती के माफी मांगिस तब राम ह वोला ए वरदान दिस कि तोला अर्पित करे भोजन पितर मन ल मिलही। तब ले श्राद्ध म कौंआ मन ल भोजन कराय के परंपरा चले आवत हे। इही कारण हे कि श्राद्ध पक्ष म कौंआ मन ल ही पहिली भोजन कराय जाथे।
नदी अउ तालाब म होही तर्पण
ए 16 दिन तक लोगन नियमित रूप ले शहर अउ गांव के विभिन्न इलाका मन म स्थित तालाब अउ नंदिया मन म अपन पितर ल तर्पण करहीं। ब्राह्मण के मंत्रोच्चार के बीच लोगन अपन पितर ल जल दिही। अउ ओकर ले परोक्ष आशीर्वाद हासिल करहीं। ए मौका म स्नान के बाद तर्पण अउ ब्राह्मण ल भोज कराय जाही। हर परिवार म ओकर दिवंगत के देहावसान के तिथि के अनुसार तर्पण के अलग-अलग तिथि रहिथे ओही तिथि म पितर के श्राद्ध होही।
शुभ काम बर रहिथे मनाही
पितर मन ल समर्पित ए सबो दिन म हर दिन पितर मन बर अलग से भोजन निकाले जाथे। अउ ब्राह्मण मन ल भोजन कराय जाथे। ये 16 दिन म कोनो भी प्रकार के शुभ काम नइ कराय जाय। जैसे गृहप्रवेश,मुंडन,विवाह आदि। ए दिन म न तो कोनो भी प्रकार के नवा कपडा़ खरीदे जाथे अउ न ही नवा कपड़ा पहिरे जाथे। पितर पाख म ब्राह्मण मन ल दान-दक्षिणा घलो दे जाथे।