राजधानी के अंबेडकर अस्पताल में HIV संक्रमित महिला की पहचान उजागर, नवजात के सामने लगा दी तख्ती, मां HIV पॉजिटिव, मामले में हाईकोर्ट सख्त

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में चिकित्सा लापरवाही का गंभीर मामला सामने आया है। गाइनो वार्ड में भर्ती एक HIV पॉजिटिव महिला के नवजात शिशु के पास अस्पताल कर्मियों ने एक पोस्टर लगा दिया, जिसमें लिखा था – “बच्चे की मां HIV पॉजिटिव है”। जब बच्चे के पिता अपने शिशु को देखने पहुंचे तो यह पोस्टर देख भावुक होकर फूट-फूटकर रो पड़े।
इस घटना ने निजता और संवेदनशीलता के अधिकारों का उल्लंघन किया है, जिसे लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव से व्यक्तिगत शपथपत्र मांगा है। कोर्ट ने टिप्पणी की है कि यह आचरण अमानवीय, असंवेदनशील और निंदनीय है, जिससे मां और बच्चे की पहचान उजागर हुई, और भविष्य में उन्हें सामाजिक कलंक व भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है। अदालत ने कहा कि यह कृत्य सीधे तौर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और गरिमा के अधिकार) का उल्लंघन है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में नवजात शिशु के बेड पर पोस्टर लगा था, जिस पर लिखा था- बच्चे की मां एचआईवी पॉजिटिव है। यह पोस्टर गाइनिक वार्ड में भर्ती मां और नर्सरी वार्ड में रखे गए नवजात के बीच लगाया गया था। जब पिता अपने बच्चे को देखने पहुंचा, तो पोस्टर देखकर भावुक हो उठे और फफक फफक कर रोने लगे। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका के रूप में सुनवाई प्रारंभ की है।
अंग्रेजी भाषा में दर्शाए गए बोर्ड में बड़े बड़े अक्षरों में एचआईवी पॉजिटिव मदर लिख दिया गया है, जिससे आसपास से गुजरने वाले और अन्य लोगों को यह आसानी से पता चल जाए कि यह वह बच्चा है, जिसकी मां एचआईवी से संक्रमित है। राजधानी रायपुर से महज कुछ किलोमीटर दूर स्थित तिल्दा क्षेत्र में रहने वाली 26 वर्षीय महिला को 4 अक्टूबर को प्रसव पीड़ा होने के बाद आंबेडकर अस्पताल के स्त्री एवं प्रसूती रोग विभाग के वार्ड में भर्ती कराया गया।

महिला विगत कुछ समय से एचआईवी से संक्रमित है। महिला के पति ने बताया कि देर शाम उसकी पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया। इस दौरान चिकित्सकों ने पाया कि बच्चे की सेहत ठीक नहीं है और वह कमजोर है, इसलिए उसे अस्पताल के अन्य यूनिट में भर्ती कर लिया गया। वहीं, बच्चे की सेहत में कुछ सुधार होने के बाद 6 अक्टूबर को उसे नर्सरी में शिफ्ट कर दिया गया।
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि 15 अक्टूबर 2025 तक यह स्पष्ट करते हुए शपथपत्र पेश करें कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों की गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए क्या व्यवस्थाएँ हैं, और भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों इसके लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। साथ ही अस्पताल कर्मियों को संवेदनशील और जिम्मेदार बनाने के लिए क्या प्रशिक्षण या जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
नाराज हाई कोर्ट ने कहा, दोबारा ना हो ऐसी गलती
डिवीजन बेंच ने सख्त लहजे में कहा कि इस तरह की घटनाएं न केवल कानूनी रूप से अपराध हैं, बल्कि मानव गरिमा पर सीधा प्रहार हैं। भविष्य मे ऐसी गलती दोबारा न हो। आदेश की कॉपी तत्काल चीफ सिकरेट्री को भेजने के निर्देश का निर्देश देते हूजे वेंच ने कहा, ताकि समय पर कार्रवाई और जवाब सुनिश्चित हो सके।