राजधानी के औद्योगिक गढ़ में मासूमों का शोषण, संभव स्टील में हो गया कांड

धरसींवा/सिलयारी: राजधानी रायपुर से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र धरसींवा-सिलतरा, विकास की चकाचौंध के पीछे छिपे एक काले सच से पर्दा उठने के बाद सवालों के घेरे में है। सम्भव स्टील में बाल श्रम का सनसनीखेज भंडाफोड़ न केवल उद्योग प्रबंधन की क्रूरता को उजागर करता है, बल्कि सरकार और श्रम विभाग की कथित मुस्तैदी की भी पोल खोलता है।
श्रम विभाग की त्वरित कार्रवाई ने सम्भव स्टील के उस धोखे को जगजाहिर कर दिया, जिसमें मासूम बच्चों से काम कराया जा रहा था, जबकि कागजों पर उन्हें बालिग दर्शाया गया था। प्रबंधन के इस दावे को विभाग ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है कि उन्होंने सभी कर्मचारियों को आधार कार्ड देखकर काम पर रखा था। मौके पर मुक्त कराए गए बच्चों की निरीहता और कम उम्र ने साबित कर दिया कि या तो प्रस्तुत किए गए आधार कार्ड नकली थे या फिर उनमें छेड़छाड़ की गई थी।

श्रम अधिकारी श्री संजय निराला ने इस गोरखधंधे पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि बच्चों को देखते ही उनकी उम्र स्पष्ट हो जाती है और प्रबंधन का यह तर्क उनकी आपराधिक जिम्मेदारी से बचने का एक शर्मनाक प्रयास है। श्रम विभाग अब इस बात की तह तक जाएगा कि क्या प्रबंधन ने जानबूझकर जाली दस्तावेज बनवाए और यदि हां, तो इसमें कौन-कौन शामिल हैं।
औद्योगिक विकास की स्याह तस्वीर: कानून की धज्जियां, बचपन नीलाम
यह घटना प्रदेश के उस औद्योगिक परिदृश्य पर एक गहरा प्रश्नचिह्न लगाती है, जहां विकास के बड़े-बड़े दावों के बीच कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और मासूमों का बचपन नीलाम किया जा रहा है। राजधानी के इतने करीब एक बड़े औद्योगिक हब में बाल श्रम का फलना-फूलना यह दर्शाता है कि सरकारी तंत्र की निगरानी और क्रियान्वयन में गंभीर कमियां हैं। यह सिर्फ एक उद्योग का मामला नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र में इस तरह के शोषण की आशंका को जन्म देता है।
बाल श्रमिक बिहार और झारखंड की होने की आशंकाश्रम विभाग की माने तो एक बालक मात्र 14 वर्ष की है जो स्थानीय है बाकी बाल श्रमिक झारखंड-बिहार से लाए गए है । दिल दहलाने वाली बात यह है कि सम्भव स्टील में काम कर रहे अधिकांश बाल श्रमिक झारखंड और बिहार जैसे दूर-दराज के राज्यों से लाए गए थे, शायद बेहतर भविष्य के सपने दिखाकर। वहीं, इस शोषण का शिकार एक स्थानीय बच्चा भी हुआ है। श्रम विभाग अब इन मासूमों को सुरक्षित आश्रय दिलाने और उनके परिवारों तक पहुंचने की कवायद में जुट गया है।

अब इंसाफ की बारी: प्रबंधन पर शिकंजा, व्यवस्था पर सवाल
सम्भव स्टील के प्रबंधन पर अब बाल श्रम निषेध अधिनियम के साथ-साथ धोखाधड़ी और जालसाजी के गंभीर आरोप लगने तय हैं। श्रम विभाग इस मामले को फास्ट ट्रैक पर ले जाकर यह सुनिश्चित करना चाहता है कि दोषियों को ऐसी सजा मिले जो दूसरों के लिए भी एक सबक हो। यह सिर्फ एक उद्योग के प्रबंधन को सजा दिलाने का मामला नहीं है, बल्कि उस व्यवस्था पर भी सवाल उठाने का समय है जो अपने ही नागरिकों के बच्चों को शोषण से बचाने में नाकाम रही है। उम्मीद है कि इस घटना के बाद सरकार और श्रम विभाग जागेंगे और औद्योगिक क्षेत्रों में श्रम कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए ठोस और पारदर्शी कदम उठाएंगे।
कुथरेल धरसींवा के एच आर हेड नीलेश कुमार सोनी के अनुसार सम्भव स्टील हमारे उद्योग में बाल श्रमिक के कार्य पर मैं ज्यादा कुछ नही बोल सकता क्यो कि सभी श्रमिक फैक्ट्री के दो ठेकेदारों के माध्यम से लाये गए है और उद्योग प्रबंधन आधारकार्ड के हिसाब से रखे हुए है।
क्षेत्रीय अधिकारी संजय निराला का कहना है कि श्रम विभाग को सूचना मिली थी कि सम्भव स्टील में काफी संख्या में बाल श्रमिकों से काम लिया जा रहा है जिसके तहत धरसींवा पुलिस और श्रम विभाग के आला अधिकारियों के साथ सयुक्त छापा मार कार्यवाही किया गया जंहा दर्जन भर बाल श्रमिकों को मुक्त कराया गया व सभी बालको को माना स्थित सम्प्रेक्षण गृह में भेजा गया है।धरसींवा थाना में उद्योग प्रबंधन व ठेकेदार के खिलाफ मामला दर्ज करने आवेदन श्रम विभाग के तरफ से दिया गया है।
धरसींवा थाना प्रभारी राजेंद्र दीवान का कहना है कि श्रम विभाग और पुलिस की सयुक्त कार्यवाही करते हुए क्षेत्र के सम्भव स्टाइल में दबिश दिया गया जंहा दर्जन भर बाल श्रमिकों को मुक्त कराया गया है।शुक्रवार शाम को श्रम विभाग ने फैक्ट्री प्रबंधन और ठेकेदार के खिलाफ कार्यवाही हेतु आवेदन पत्र दिए है।